सृष्टि की संरचना में देवी देवताओं का वास है|
कर्म एवं कर्म फल इनके बीच कारण कार्य संभंध है जिसे हम धर्म देवता के रूप में पहचानते हैं |
धर्म देवता जो है, वह हर एक मानव के जीवन में, अत्यंत महत्वपूर्ण है| यह इसलिए, के मानव को पुरुषार्थ का प्रयोग करने की क्षमता प्रधान की गई है|
इसका मतलब यह है की मानव हर कर्म में बुद्धि का सही प्रयोग कर, अपने कर्मों को संतुलित कर सकता है, तथा अंपने जीवन मार्ग का स्वयं नियंत्रण कर सकता है| यह स्वतंत्रता पशु पक्षी में बहुत ही कम है, और मानव में काफ़ी अधिक मात्रा में है|
परंतु यह ब|त आवश्य है, की मानव विमूढ़ता से इस बुद्धि को सही तरह प्रयोग नही कर पाता, और अनेक बार सही मार्ग को चुन नही पाता | यही मानव जाती का दुर्भाग्य है|
अगर मानव धर्म देवता को सही प्रकार से पाचनने से इनकार कर देता है, तो वह आशा एवं निराशा के द्वन्द्व में फस जाता है|
धर्म देवता को सही प्रकार समझना इसलिए मानव के लिए अत्यंत आवश्यक हो जाता है|
कर्म दो प्रकार के होते हैं| धर्ंानुसार एवं धर्म के वीरुध | सुकर्म और दुष्कर्म |
क्या सुकर्म है, एवं क्या दुष्कर्म है, इसका ज्ञान, हर मनुष्य की बुद्धी में स्थित है|
कर्म एवं कर्म फल इनके बीच कारण कार्य संभंध है जिसे हम धर्म देवता के रूप में पहचानते हैं |
धर्म देवता जो है, वह हर एक मानव के जीवन में, अत्यंत महत्वपूर्ण है| यह इसलिए, के मानव को पुरुषार्थ का प्रयोग करने की क्षमता प्रधान की गई है|
इसका मतलब यह है की मानव हर कर्म में बुद्धि का सही प्रयोग कर, अपने कर्मों को संतुलित कर सकता है, तथा अंपने जीवन मार्ग का स्वयं नियंत्रण कर सकता है| यह स्वतंत्रता पशु पक्षी में बहुत ही कम है, और मानव में काफ़ी अधिक मात्रा में है|
परंतु यह ब|त आवश्य है, की मानव विमूढ़ता से इस बुद्धि को सही तरह प्रयोग नही कर पाता, और अनेक बार सही मार्ग को चुन नही पाता | यही मानव जाती का दुर्भाग्य है|
अगर मानव धर्म देवता को सही प्रकार से पाचनने से इनकार कर देता है, तो वह आशा एवं निराशा के द्वन्द्व में फस जाता है|
धर्म देवता को सही प्रकार समझना इसलिए मानव के लिए अत्यंत आवश्यक हो जाता है|
कर्म दो प्रकार के होते हैं| धर्ंानुसार एवं धर्म के वीरुध | सुकर्म और दुष्कर्म |
क्या सुकर्म है, एवं क्या दुष्कर्म है, इसका ज्ञान, हर मनुष्य की बुद्धी में स्थित है|
No comments:
Post a Comment